आज के हालात  और विपक्ष


-बी.एल. गौड़


देश के जो हालात बने हुए हैं उसने हमें न केवल आर्थिक रूप से बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी कमजोर बना दिया है जबकि यही वह समय है जब आपको मानसिक और शारीरिक रूप से सबसे ज्यादा मजबूत होने की जरुरत है। मेरे पास अपने मन को मजबूत करने का सबसे बड़ा टॉनिक है मेरा लेखन। मैं जब भी किसी समस्या को देखता या महसूस करता हूँ तो उस पर कुछ न कुछ लिख कर अपने मन की पीड़ा को शांत कर लेता हूँ। ऐसा ही मैंने कुछ दिन पहले भी किया। दरअसल, कुछ दिन पहले मैंने एक कविता लिखी थी जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार थीं:-
देश के माननीयों में/कुछ दीमक भी हैं/जो देश की चौखट में घुसे हैं/उन्हें जब भी/बाहर लाने की कोशिश की गई/वे/भीतर और भीतर/घुसते चले गये/और हर तरह के दीमक मार तेल/बुरी तरह छले गये/
अब दो बातें उभरती हैं/और दो प्रश्न करती हैं/या तो तेल में मिलावट थी/या फिर उनके खून में। 
ये एक लम्बी कविता की कुछ पंक्तियां हैं जो मेरी शीघ्र प्रकाशित होने जा रही पुस्तक में समाहित होंगी। आपने अनुमान लगा लिया होगा कि मेरी इस कविता का इशारा किस ओर है।
आज देश एक नहीं दो बड़े संकटों से जूझ रहा है एक है कोरोना नाम की महामारी जिससे बचने के लिये देश की तमाम ताकतें दिन-रात लगी हैं। इसने देश को बहुत हद तक हर मोर्चे पर कमजोर कर दिया है। दूसरा बड़ा संकट है हमारा एक दुश्मन देश जो हमें युद्ध के लिये बाध्य कर रहा है। युद्ध के परिणाम क्या होते हैं इससे हम सभी भलीभांति परिचित हैं। युद्ध ऐसा विनाश लाता है जिसमें जीता हुआ देश भी पराजित सा ही महसूस करता है जब वह अपने देश के जान-माल के नुकसान का हिसाब लगाता है, विशेषकर आज के इस परमाणु युग में। इन दोनों संकटों से पार पाने के लिये हमारी सेनायें, प्रशासन और देश की वह प्रजा जो देश को प्यार करती है, तन-मन-धन से देश के साथ खड़ी दिखाई देती है। तो वहीं दूसरी ओर एक विपक्ष नाम का प्राणी भी सामने खड़ा दिखाई देता है। जब वह शासन करता है तो पक्ष अन्यथा विपक्ष कह लाता है।
हर लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का होना स्वाभाविक तथा अनिवार्य होता है। विपक्ष का कार्य होता है कि सरकार के हर उस कदम का विरोध करना जो देश हित में न हो, लेकिन वही विपक्ष जब सरकार के हर उस कदम का विरोध करता है जो जनता के भले के लिये हो या देश की सुरक्षा के लिये तो वह बहुत खलता है। आज यह विपक्ष सरकार के हर कदम का विरोध इसलिये करता है कि उसने यह मान लिया है कि विपक्ष का मतलब ही विरोध करना होता है, हालात कुछ भी हों और कैसे भी हों। काश इस विपक्ष में कुछ अटल जी जैसे व्यक्ति होते और ऐसी ही भूमिका निभाते जो अटल जी ने उस समय निभाई थी जब वे विपक्ष में थे। कभी-कभी सोच कर दु:ख होता है कि आखिर राजनीति ने अपना स्वरुप इतना ज्यादा क्यों बदल दिया है ? क्यों किसी नेता को अपने व् अपनी पार्टी के हित के आगे कुछ और दिखाई नहीं देता ? 
कोई भी देश बनता है देश में रहने वाले नागरिकों से या फिर उस सरकार से जो देश को चलाती है, देश की अस्मिता, देश का मान-सम्मान जो हमारी सरकार सेना के द्वारा करती है, सीमाओं की रक्षा करती है जिसके कारण हम और आप सब लोग बहुत आराम से निश्चिंत होकर सोते हैं। आज देश के ऊपर एक बड़ा संकट है। आप सभी लोग मीडिया द्वारा देख रहे हैं कि किस तरह एक बड़ा दुश्मन देश लद्दाख में सीमा पर अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ा रहा है, अपनी सीमा में सेना की गतिविधियों से देश को डराने की कोशिश कर रहा है साथ ही हमारी सेना और हमारे प्रधानमंत्री के तेवर देखकर परेशान है। अब उस देश (चीन) के तानाशाहों के बोल बदलने लगे हैं। स्थिति बहुत तनावपूर्ण है लेकिन हम सब देशवासियों को अपने देश के प्रधानमंत्री और सेना पर पूरा भरोसा है कि हम निश्चित ही विजयी होंगे। 
देश में कुछ माननीय ऐसे भी हैं जिनके बारे में मैंने ऊपर लिखा है कि वे इस देश की जड़ों में दीमक की तरह हैं और देश को खोखला कर गिराने की लगातार कोशिशों में लगे रहते हैं। देश का दुर्भाग्य है कि उसे ऐसा विपक्ष मिला है जो हर समय देश और सेना का मनोबल गिराने में लगा रहता है।
हम तो ईश्वर और कर्म में विश्वास रखते हैं। चाहते हैं कि विपक्ष अपनी भूमिका को पहचान कर एक सकारात्मक भूमिका में आये। जहां वास्तव में  कुछ गलत हो रहा है अपना पक्ष रखे, अपने पक्ष के गलत बयानी करने वालों को रोकर कुछ ऐसा करे कि देश के लोगों में विपक्ष के लिये कुछ सम्मान की भावना पैदा हो।
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