किसान और सरकार के बीच फंसा आम आदमी

 

 


मैं सोच रहा था... कि किसानों के धरने का आज आखिरी दिन हो सकता है यदि 30.12.2020 को होने वाली बैठक में कोई समझौता हो जाये तो, अन्यथा पंजाब में अभी तो केवल 1500 ही दूर-संचार के टावरों को नष्ट किया गया है  यह संख्या अनगिनत भी हो सकती है।

यही सोचकर बचते-बचाते इन्दिरापुरम की छोटी-छोटी सड़कों को पार-कर मैं यू.पी. बार्डर पर पहुँच गया। थोड़ी दूर पर हरी पगड़ी और टोपी पहने किसान मोर्चे पर डटे हुए थे। नोएडा से आने वाले हाई-वे को पूरी तरह से बन्द किया हुआ था और लगभग तीन किलोमीटर तक गाडिय़ों का रेला बिना किसी हलचल के चुपचाप और असहाय होकर इन किसानों की तरफ  देख रहा था, इस उम्मीद से कि शायद पुलिस इनसे कोई बातचीत करके हमें आगे बढऩे के लिए थोड़ा-सा रास्ता दिलवा सके। लेकिन किसानों का रुख मरने-मारने वाला था, पुलिस तो उल्टे उन्हें हरे-पीले और सफेद रंग के मास्क बाँट रही थी। मैंने ड्राइवर से कहा- कि वह गाड़ी को ऐसी जगह खड़ी कर ले जो इन लोगों की नजर से दूर हो और मैं यहाँ इनसे बात करके लगभग आधा घंटे में लौटूँगा।

छड़ी के सहारे चलते हुए जब मैं भीड़ के पास पहुँचा तो कुछ आँखें मुझे ही घूर रहीं थीं। कौन हो सकता है यह बूढ़ा आदमी जो हमारी ओर छड़ी के सहारे चलता हुआ बढ़ा चला आ रहा है।

पास पहुँचकर मैंने राम-राम की और कुछ मेरे जैसे लोग ट्रैक्टर की बगल में तखत पर बैठे थे, मैं उनकी ओर बढ़ा। कुछ लोग खड़े हो गये और मैं उनके पास बैठ गया। एक मेरी उमर का ही आदमी 


बोला- भाई तुम किसान तो हो नहीं और ना ही टी.वी. वाले हो, तो तुम कौन हो? मैंने अपना नाम बताया और अपना गाँव बताया और साथ ही यह भी कि मैं किसान नहीं बल्कि किसान का बड़ा भाई हूँ। खेती, किसानी, और किसान के विषय में सब कुछ जानता हूँ। किताब लिखता हूँ और एक अखबार भी निकालता हूँ। कुछ बातें मैं आपसे जानना चाहता हूँ, इसीलिये आपके पास आया हूँ और खासकर यह जानने के लिये कि यदि सरकार से कल की बैठक  फेल हो गई तो क्या होगा ?

चौधरी रामसिंह जो मुझसे मुखातिब था बोला- देखो जी कल क्या होगा यह तो  हमें नहीं पता लेकिन इतना जरूर पता है कि यदि कोई बात नहीं बनी तो यह आग सारे देश में फैलेगी। मैंने सोचा कि यह आंदोलन कहीं फैले न फैले लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश और पंजाब में तो अपनी सभी सीमायें लाँघ जायेगा। संचार व्यवस्था तो पहले ही ठप हो गई है। बच्चे और बड़े विद्यार्थी जो परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे वह बंद, कोर्ट-कचहरी बंद, घर और गाँव से बातचीत बंद। मैंने उस सज्जन से पूछा कि जो लोग खम्बों पर चढ़कर संचार के खम्बों को तोड़ रहे हैं, क्या वे सही में किसान हैं?

चौधरी रामसिंह ने बड़ी ईमानदारी से जबाव दिया- वे किसान नहीं हैं, सिंधु बार्डर पर किसानों का भेष धर कर जो लोग धरने में शामिल हो गये हैं, उनमें शामिल हैं लाल झण्डे वाले कामरेड्स, आजादी माँगने वाले युवा, टुकड़े-टुकड़े गेंग के लीडर और कुछ काँग्रेस कार्यकर्ता। हम यह भी जानते हैं कि ये लोग हमारे और पंजाब के किसानों के इस धरने को फेल करा सकते हैं। इनका हमारी तकलीफों या माँगों से कुछ लेना-देना नहीं है, इनका मुख्य उद्देश्य है हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाना। पंजाब की सरकार और पुलिस बिलकुल चुप रह कर तमाशा देख रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री यह तो कहते हैं कि ऐसे लोगों पर कार्यवाही हो, लेकिन कार्यवाही करते नहीं है। उत्तर प्रदेश में टावर तोड़कर देखें तो इन्हें आटे-दाल का सारा भाव पता चल जायेगा।

क्या सरकार ऐसा नहीं कर सकती कि यह सब प्रदेशों की सरकारों पर ही छोड़ दे। वहाँ के मुख्यमंत्री अपने-अपने प्रदेश की इस समस्या को अपने आप सुलझायें। ये कानून लाभकारी है अथवा नुकसान दायक, सब एक साल में ही साफ हो जायेगा और देखो बाबूजी ! तुम अपने अखबार में जो मर्जी लिखना लेकिन ताऊ रामसिंह का नाम मत लिखना। हमें तो उसी गाँव में रहना है, जहाँ  हमारे नेता रहते हैं और इस धरने के मुखिया हैं। यह बात चौधरी रामसिंह के बेटे ने मुझसे मुखातिब होकर कही। मैंने यह सोचकर रामसिंह का नाम नहीं काटा कि रामसिंह ने जो भी कहा, वह तो सत्य है फिर सत्य को लिखने में डर कैसा?

मैं सोचता हुआ उस धरना स्थल से लौट आया कि इन लोगों को सारी सच्चाई का पता है लेकिन ये सभी कहीं  न कहीं  मजबूर हैं।                                             

—बी.एल. गौड़